हम ग़ज़ालों को चाहने वाले,
बेमिसालों को चाहने वाले।।
मह-रुख़ों से हमें मुहब्बत है,
मह-जमालों को चाहने वाले।।
हम-ज़ुबानों से राब्ता हम को,
हम-ख़यालों को चाहने वाले।।
ख़ुश अदाओं पे जान देते हैं,
ख़ुश-खि़सालों को चाहने वाले।।
नश्तरे-ग़म से फूटते हैं जो,
ऐसे छालों को चाहने वाले।।
सारी दुनिया से बे नियाज़ रहे,
नाज़ वालों को चाहने वाले।।
(तबस्सुम की लकीरें)
बहुत ही उम्दा,पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ ,कुछ बेहतरीन पढने को मिला....शुक्रिया......
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