हम ग़ज़ालों को चाहने वाले,
बेमिसालों को चाहने वाले।।
मह-रुख़ों से हमें मुहब्बत है,
मह-जमालों को चाहने वाले।।
हम-ज़ुबानों से राब्ता हम को,
हम-ख़यालों को चाहने वाले।।
ख़ुश अदाओं पे जान देते हैं,
ख़ुश-खि़सालों को चाहने वाले।।
नश्तरे-ग़म से फूटते हैं जो,
ऐसे छालों को चाहने वाले।।
सारी दुनिया से बे नियाज़ रहे,
नाज़ वालों को चाहने वाले।।
(तबस्सुम की लकीरें)
Ghazalgo
Tuesday 15 November 2011
Saturday 24 September 2011
आगाज़
ज़ख़्म सब खिलने लगे, दिल ने दुखन महसूस की;
रूह ने सीने के अन्दर, इक घुटन महसूस की।
फिर तुम्हारी याद के, काँटों ने लीं अंगड़ाइयाँ;
फिर मिरे दिल ने कुई, गहरी चुभन महसूस की।
बामो-दर करती हुई, रोशन मकाने-फि़क्र के;
दिल के आँगन में उतरती, इक किरन महसूस की।
हमने ज़ौक़े-शायरी से, मुन्सलिक हर वारदात;
इक उरूसे-शब, नवेली इक दुल्हन महसूस की।
दो घड़ी को, लब से लब, बाँहों से बाँहें मिल गईं;
दो घड़ी साँसों ने, साँसों की तपन महसूस की।
रुक गये हम उनकी, यादों के शजर की छाँव में;
इश्क़ के सहरा में दिलकश, जब थकन महसूस की।
रूह ने सीने के अन्दर, इक घुटन महसूस की।
फिर तुम्हारी याद के, काँटों ने लीं अंगड़ाइयाँ;
फिर मिरे दिल ने कुई, गहरी चुभन महसूस की।
बामो-दर करती हुई, रोशन मकाने-फि़क्र के;
दिल के आँगन में उतरती, इक किरन महसूस की।
हमने ज़ौक़े-शायरी से, मुन्सलिक हर वारदात;
इक उरूसे-शब, नवेली इक दुल्हन महसूस की।
दो घड़ी को, लब से लब, बाँहों से बाँहें मिल गईं;
दो घड़ी साँसों ने, साँसों की तपन महसूस की।
रुक गये हम उनकी, यादों के शजर की छाँव में;
इश्क़ के सहरा में दिलकश, जब थकन महसूस की।
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